गुलशन कि फ़क़त फूलों से नहीं काटों से भी जीनत होती है,
जीने के लिए इस दुनिया में ग़म कि भी ज़रूरत होती है.
ऐ वाइज़-ए-नादां करता है तू एक क़यामत का चर्चा,
यहाँ रोज़ निगाहें मिलती हैं यहाँ रोज़ क़यामत होती है.
वो पुर्सिश-ए-ग़म को आये हैं कुछ कह ना सकूं चुप रह ना सकूं,
खामोश रहूँ तो मुश्किल है कह दूं तो शिक़ायत होती है.
करना ही पड़ेगा जब्त-ए-अलम पीने ही पड़ेंगे ये आंसू,
फरियाद-ओ-फुगाँ से एय नादाँ तौहीन-ए-मोहब्बत होती है.
जो आके रुके दामन पे ‘सबा‘ वो अश्क नहीं है पानी है,
जो अश्क ना छलके आंखों से उस अश्क कि कीमत होती है.
जीनत - beauty, वाइज - preacher, पुर्सिश - inquiry,
जब्त - suffer,bear, अलम - pain, फुगाँ - lamentation
Tuesday, August 12, 2008
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2 comments:
sahi....
meri fav lines last two thee ....
marhaba.....
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